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Ek Gram Jaatak Kee Aatmakatha

मेरी आत्मकथा का यह दूसरा खंड आपके हाथ में है \ पिछले खंड में मैंने अपने पूर्वजों, माता-पिता, अन्य स्वजनों, अपने जन्म तथा पालन-पोषण के बारे में लिखा था \ उसके बाद किस प्रकार कष्टसाध्य ग्रामीण विद्यालयों के परिवेश में मेरी शिक्षा आदि हुई और परिस्थितियों ने बार-बार अपने लक्ष्य से मुझे भटका दिया, उसका भी उल्लेख है \ किंतु मुझे जो भी मिला वह मेरे लक्ष्य से अच्छा मिला जिसे आदिशक्ति जगदंबा का प्रसाद जानकर ग्रहण करता गया \ मुझे अनुभव हुआ कि कृपा कष्ट के साथ मिलती है तभी कृपालु के प्रति श्रद्धा और विश्वास प्रगाढ़ होता जाता है \

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक जीव को जातक कहा जाता है, अतः इस आत्मकथा में ‘जातक’ शब्द का प्रयोग किया गया है \ अपने वाराणसी प्रवास के समय मुझे कुछ विद्वानों से मिलने के बाद ऐसे अनुभव हुए कि मेरे जीवन पर ग्रहों का प्रभाव स्पष्ट है \ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के आचार्य पं. रामचंद्र पांडे, जिनका उल्लेख इस पुस्तक के पहले खंड में आया है, मेरे जीवन की घटनाओं पर एक शोध करवाना चाहते थे; किंतु उस समय मैं उन घटनाओं को लिपिबद्ध नहीं कर पाया था \ अब वह सेवानिवृत्त और रोग ग्रसित होने के कारण ऐसा शोध करने में असमर्थ हैं \ अन्य ऐसे ज्योतिषी मुझे नहीं मिले जिनसे अपने जीवन की अच्छी या बुरी घटनाओं का संबंध ग्रहों से जान पाता \ फिर भी इन घटनाओं पर ग्रह-दशाओं के प्रभाव को मैं स्वतः अनुभव करता रहा जिसका उल्लेख मैंने स्वयं कहीं-कहीं इस पुस्तक में किया है \

पिछले खंड में भगवती कृपा से अकस्मात ब्रिटेन में प्रशिक्षण के लिए भेजे जाने के आश्चर्यजनक सरकारी निर्णय का पालन करने में हिचकिचाहट का मैंने उल्लेख किया था \ अंततोगत्वा अक्टूबर १९८६ में दिल्ली से लंदन होते हुए बाथ विश्वविद्यालय के लिए प्रस्थान किया \ तारतम्यता बनाए रखने के लिए मैंने इस खंड की कथा वहीँ से शुरू किया है \ मेरा प्रयास रहा कि इस प्रवास में जो कुछ देखा, सुना, पढ़ा, समझा उसका सारांश सचित्र आप के समक्ष रखूँ ताकि जिनको ऐसे अवसर नहीं मिले उनको भी इसका लाभ मिले \ इसमें इंग्लॅण्ड में पढ़ाई तथा यूरोप के कुछ अनुभव, उसके साथ मेरी प्रोन्नति और आयकर आयुक्त और महानिदेशक के रूप में मेरे कार्य और सुख-दुःख आदि शामिल हैं \

    अपने देश में वापस आने पर भी मुझे कई ऐसे स्थानों पर जाने का अवसर मिला जो अद्भुत हैं \ उनका तथा मेरे पारिवारिक उल्लास और कठिनाइयों का भी सचित्र सारांश इस खंड में देने का प्रयास किया है \ इस प्रक्रिया में पूरे जीवन को एक बार फिर से जीना पड़ा जो कभी सुखदायी और कभी दुखदायी था \ मुझे प्रायः सुख भी दुःख के वेष्ठन में लिपटा हुआ मिला \इस कथा में कुछ को छोड़कर अन्य तथ्य स्मृति के आधार पर और कुछ इंटरनेट से प्राप्त करके लिखे गए हैं इसलिए समय-काल आदि से संबंधित भूलें हुई हों तो पाठक गण मुझे कृपया सूचित करें ताकि अगले संस्करण में सुधार हो सके \

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मेरी आत्मकथा का यह दूसरा खंड आपके हाथ में है \ पिछले खंड में मैंने अपने पूर्वजों, माता-पिता, अन्य स्वजनों, अपने जन्म तथा पालन-पोषण के बारे में लिखा था \ उसके बाद किस प्रकार कष्टसाध्य ग्रामीण विद्यालयों के परिवेश में मेरी शिक्षा आदि हुई और परिस्थितियों ने बार-बार अपने लक्ष्य से मुझे भटका दिया, उसका भी उल्लेख है \ किंतु मुझे जो भी मिला वह मेरे लक्ष्य से अच्छा मिला जिसे आदिशक्ति जगदंबा का प्रसाद जानकर ग्रहण करता गया \ मुझे अनुभव हुआ कि कृपा कष्ट के साथ मिलती है तभी कृपालु के प्रति श्रद्धा और विश्वास प्रगाढ़ होता जाता है \

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक जीव को जातक कहा जाता है, अतः इस आत्मकथा में ‘जातक’ शब्द का प्रयोग किया गया है \ अपने वाराणसी प्रवास के समय मुझे कुछ विद्वानों से मिलने के बाद ऐसे अनुभव हुए कि मेरे जीवन पर ग्रहों का प्रभाव स्पष्ट है \ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के आचार्य पं. रामचंद्र पांडे, जिनका उल्लेख इस पुस्तक के पहले खंड में आया है, मेरे जीवन की घटनाओं पर एक शोध करवाना चाहते थे; किंतु उस समय मैं उन घटनाओं को लिपिबद्ध नहीं कर पाया था \ अब वह सेवानिवृत्त और रोग ग्रसित होने के कारण ऐसा शोध करने में असमर्थ हैं \ अन्य ऐसे ज्योतिषी मुझे नहीं मिले जिनसे अपने जीवन की अच्छी या बुरी घटनाओं का संबंध ग्रहों से जान पाता \ फिर भी इन घटनाओं पर ग्रह-दशाओं के प्रभाव को मैं स्वतः अनुभव करता रहा जिसका उल्लेख मैंने स्वयं कहीं-कहीं इस पुस्तक में किया है \

पिछले खंड में भगवती कृपा से अकस्मात ब्रिटेन में प्रशिक्षण के लिए भेजे जाने के आश्चर्यजनक सरकारी निर्णय का पालन करने में हिचकिचाहट का मैंने उल्लेख किया था \ अंततोगत्वा अक्टूबर १९८६ में दिल्ली से लंदन होते हुए बाथ विश्वविद्यालय के लिए प्रस्थान किया \ तारतम्यता बनाए रखने के लिए मैंने इस खंड की कथा वहीँ से शुरू किया है \ मेरा प्रयास रहा कि इस प्रवास में जो कुछ देखा, सुना, पढ़ा, समझा उसका सारांश सचित्र आप के समक्ष रखूँ ताकि जिनको ऐसे अवसर नहीं मिले उनको भी इसका लाभ मिले \ इसमें इंग्लॅण्ड में पढ़ाई तथा यूरोप के कुछ अनुभव, उसके साथ मेरी प्रोन्नति और आयकर आयुक्त और महानिदेशक के रूप में मेरे कार्य और सुख-दुःख आदि शामिल हैं \

    अपने देश में वापस आने पर भी मुझे कई ऐसे स्थानों पर जाने का अवसर मिला जो अद्भुत हैं \ उनका तथा मेरे पारिवारिक उल्लास और कठिनाइयों का भी सचित्र सारांश इस खंड में देने का प्रयास किया है \ इस प्रक्रिया में पूरे जीवन को एक बार फिर से जीना पड़ा जो कभी सुखदायी और कभी दुखदायी था \ मुझे प्रायः सुख भी दुःख के वेष्ठन में लिपटा हुआ मिला \इस कथा में कुछ को छोड़कर अन्य तथ्य स्मृति के आधार पर और कुछ इंटरनेट से प्राप्त करके लिखे गए हैं इसलिए समय-काल आदि से संबंधित भूलें हुई हों तो पाठक गण मुझे कृपया सूचित करें ताकि अगले संस्करण में सुधार हो सके \

Weight .400 kg
Dimensions 22 × 14 × 1.2 cm
Author

R.P.M.Tripathi

Publisher

Namya press

Series

Hardcover

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