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Hiyaa Ki Batiyan

हिया की बतियाँ अर्थात मन की बातें। मन में हज़ारों विचार एक साथ जब विचरते हैं तो उनमे से बस कुछ ही मस्तिष्क पर छाप छोड़ पाते हैं। बाकी पटल से गायब हो जाते हैं । कुछ विचार ही शब्दों का परिधान पहनकर कभी गद्य में तो कभी पद्य में सृजन का शरीर धारण कर पाते हैं। ये काव्य संकलन “हिया की बतियाँ ” उन्ही विचारों का शब्द मूर्त रूप शरीर का जीवित रूप है।

 

अच्छे बुरे ,आड़े तिरछे ,उलटे पुलटे ,परिपक़्व-अपरिपक़्व , छंद में अछन्द में , आयोजित प्रायोजित कैसे भी विचार मन में आएं,उनका मंथन बहुत आवश्यक है। क्योंकि वैचारिक मंथन से ही समाज की यथास्तिथि का पता चलता है और भविष्य का मार्ग सुझाव या अग्रिम चेतावनी के साथ समझ आता है।

 

इस संकलन में मन में जो भी आया जैसे भी आया वो अक्षरशः मैंने कागज़ पर लिख दिया है।

ये ही तो हैं हिया की बतियाँ जो आप की भी हैं शायद …..

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Jaha tak Ham Jante he

Jaha tak Ham Jante he
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Janta ki Awaje

मेरा यह मानना है कि अब सामान्य जन का भी कलम उठाना जरूरी हो चला हैl सत्ता हमेशा से सच लिखने वालों को प्रताड़ित करती है, यह कोई नई बात नहीं है पर अब इसका पैमाना लगातार पहले से बड़ा होता जा रहा हैl अब तो लोकतांत्रिक सरकार की नीतियों का विरोध भी किसी को टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य बना सकता है, आप अर्बन नक्सल करार दिए जा सकते हैं, आप देशद्रोही करार दिए जा सकते हैं, आप किसी भगवा भीड़ द्वारा मारे जा सकते हैl इतना तो तय है कि सरकारी इशारों पर चलने वाली सोशल मीडिया पर काबिज ट्रोल आर्मी आपका लगातार जनाजा निकालती रहेगीl

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र के इतिहास के गर्त में समां चुकी हैl जिस लोकतंत्र में न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं हो, मीडिया घराने केवल सरकार का प्रचार तंत्र बन चुके हों, सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण हो, उस लोकतंत्र में अभिव्यक्ति खतरनाक और आपराधिक शब्द बन चुका है, और आजादी शब्द से तो सरकार भी नफरत करती हैl पर, अभिव्यक्ति के खतरे तो उठाने ही पड़ेंगेl

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Kuch Apni Kuch Jag ki Duniadari

सभी के मन मस्तिष्क में हजारों सवाल एक प्रश्नचिन्ह लिये आते हैं और मुँह बाये आपसे तो कभी अपने आपसे उन सवालोँ का जवाब माँगते हैं। जिनके जवाब हम तुरन्त दे देते हैं यानि जिनके उत्तर से हम खुद सन्तुष्ट हो जाते है तो वो प्रश्न और विचार कुछ समय बाद स्वम् विस्मृत हो जाते हैं। 

 जिन प्रश्नों के उत्तर हम दे नहीं पाते या यूँ  कहें की हमे सुझाते नहीं वो हमे कहीं न कहीं उद्देलित करते रहते हैं। परेशान करते रहते हैं। 

 ये सामाजिक मानसिक पारिवारिक अनकहे और अनसुलझे प्रश्न ही कविता हैं जब वो अपने हासिल को पाने के लिये शब्दोँ  का सहारा लेकर काग़ज़ पर आ जाती है। 

 इस धरा का प्रत्येक व्यक्ति दो रूप से जीवन जीता है। एक व्यक्तिगत और दूसरा सामाजिक। कोई भी व्यक्ति एकरूपीय हो ही नहीं सकता। जब तक वो व्यक्तिगत जीवन मंथन नहीं करेगा वो सामाजिक हो नहीं सकता। 

 कुछ अपनी कुछ सबकी, वो वैचारिक व्यक्तिगत एवम सामाजिक अनुभूति है ,वो अनुभव हैं जो कभी मन ने समाज से पाए हैं तो कभी समाज के मन पर अपने अमिट प्रभाव छोड़ कर अपना अस्तित्व तलाशते रहे। 

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Man Sarthi

प्रकृति, पृथ्वी, समाज, परिवार और उनका केन्द्र बिन्दु एक संवेदनशील मन जो जीवन के विविध् सोपानों को सिपर्फ नेत्राांे से नहीं हृदय से भी देखता है और हृदय में संचयित हो जाता है वह घटनाक्रम और जन्म होती है कविता की पंक्तियाँ।
इन कविताओं को सृजन करने में जिन व्यक्ति, विशेष घटनाक्रमों का योगदान रहा जिनका सूक्ष्म रूप में मेरे चिंतन पर प्रभाव पड़ा मैं तटस्थ रूप से उनका हृदय से आभार प्रकट कर रहा हूँ तथा कृतज्ञ हँू जिनसे मेरे अंदर का यह भाव रूप् अंकुरित हुआ। मानव का जीवन बहु आयामों से भरा है जिन्हें वह स्मृतियों में रखता हुआ आगे बढ़ता है मैंने उसे स्मृतियों के साथ-साथ अपने शब्दों में प्रकट करने का प्रयत्न किया है आशा है यह रचनाएँ आप सभी को किसी ना किसी रूप में आपकी अपनी भावनाओं का एहसास करायेंगी।

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