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Prarabdh Hindi Kahani Sangrah

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साहित्य सृजन के लिए रचनात्मकता के साथ हृदय में भावुकता और संवेदनशीलता भवन निर्माण में ईंट-सीमेंट की तरह जरूरी होती है और प्रारब्ध के प्रारंभ प्राकत्थन से ही विद्वान आचार्य श्री के एस भारद्वाज की भावुकता के दर्शन हो जाते हैं । आज के मशीनीकरण ने जब इंसान को भी यंत्र में बदल दिया है और निरंतर बढ़ती महत्वाकांक्षाओं ने निराशा और कुंठा को स्थायित्व सा दे दिया है तो प्रारब्ध का एक एक शब्द जीवन मे आने वाले हर उतार चढ़ाव का सामना करने की प्रेरणा देता है । 

खिड़कियां से लेकर पति पत्नी तक कुल 37 कहानियों में परिस्थितियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिस तरह से शब्दों का चयन किया गया है वह कीमती कपड़े पर की गई कशीदाकारी की अनुभूति कराता है । 

मसलन, खिड़कियां में दादाजी के भोलेपन के बहाने खिड़कियों के पारंपरिक और प्रचलित लाभ के साथ जिस तरह से पड़ोसियों पर ताकाझांकी के व्यवहारिक लाभ का वर्णन किया गया है वह सहज हास्य के साथ वर्तमान परिवेश पर अच्छा व्यंग है । बहुत सारे लोगों को इसी में जीवन का स्वाद मिलता है । 

इसी प्रकार हर कथा भावनाओं के पटल पर जीवन के अलग अलग रंग बिखेरती है । बलि में अनाथ बालक भीमा को सहारा देने पर दीनू काका के प्रति गांव के लोगों के व्यवहार के माध्यम से जातपात की परंपरागत कुरीति का वर्णन भी संवेदनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाता है । सामाजिक न्याय के लिए पूरे समाज से टकराने की अद्भुत कथा है बलि जिसमे भीमा जैसे अनाथ के त्याग को भी अद्भुत मानना पड़ेगा । 

फौज की आंतरिक व्यवस्था या दुर्व्यवस्था का जिक्र शहादत कथा में यथार्थपूर्ण लगता है कि राष्ट्र के लिए प्राण गंवाने के जज्बे के साथ जो व्यक्ति सेना में भर्ती होता है, उसमें विद्रोही भावनाएं क्यों और किस प्रकार की परिस्थितियों में पैदा होती हैं

सत्य तो यह है कि प्रारब्ध की हर कहानी जीवन के हर पहलू से पूरी नजदीकी से परिचय कराती है और रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव को हल्का करके मानवीय संवेदना को जगाने का सफल प्रयास करती है ।

Weight .499 kg
Dimensions 20 × 15 × 1 cm
Author Name

K.S.Bhardwaj

Author

Dr. K.S. Bhardwaj

Publisher

Balaji World of Books

Series

Paperback

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Editorial Review

साहित्य सृजन के लिए रचनात्मकता के साथ हृदय में भावुकता और संवेदनशीलता भवन निर्माण में ईंट-सीमेंट की तरह जरूरी होती है और प्रारब्ध के प्रारंभ प्राकत्थन से ही विद्वान आचार्य श्री के एस भारद्वाज की भावुकता के दर्शन हो जाते हैं । आज के मशीनीकरण ने जब इंसान को भी यंत्र में बदल दिया है और निरंतर बढ़ती महत्वाकांक्षाओं ने निराशा और कुंठा को स्थायित्व सा दे दिया है तो प्रारब्ध का एक एक शब्द जीवन मे आने वाले हर उतार चढ़ाव का सामना करने की प्रेरणा देता है । 

खिड़कियां से लेकर पति पत्नी तक कुल 37 कहानियों में परिस्थितियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिस तरह से शब्दों का चयन किया गया है वह कीमती कपड़े पर की गई कशीदाकारी की अनुभूति कराता है । 

मसलन, खिड़कियां में दादाजी के भोलेपन के बहाने खिड़कियों के पारंपरिक और प्रचलित लाभ के साथ जिस तरह से पड़ोसियों पर ताकाझांकी के व्यवहारिक लाभ का वर्णन किया गया है वह सहज हास्य के साथ वर्तमान परिवेश पर अच्छा व्यंग है । बहुत सारे लोगों को इसी में जीवन का स्वाद मिलता है । 

इसी प्रकार हर कथा भावनाओं के पटल पर जीवन के अलग अलग रंग बिखेरती है । बलि में अनाथ बालक भीमा को सहारा देने पर दीनू काका के प्रति गांव के लोगों के व्यवहार के माध्यम से जातपात की परंपरागत कुरीति का वर्णन भी संवेदनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाता है । सामाजिक न्याय के लिए पूरे समाज से टकराने की अद्भुत कथा है बलि जिसमे भीमा जैसे अनाथ के त्याग को भी अद्भुत मानना पड़ेगा । 

फौज की आंतरिक व्यवस्था या दुर्व्यवस्था का जिक्र शहादत कथा में यथार्थपूर्ण लगता है कि राष्ट्र के लिए प्राण गंवाने के जज्बे के साथ जो व्यक्ति सेना में भर्ती होता है, उसमें विद्रोही भावनाएं क्यों और किस प्रकार की परिस्थितियों में पैदा होती हैं

सत्य तो यह है कि प्रारब्ध की हर कहानी जीवन के हर पहलू से पूरी नजदीकी से परिचय कराती है और रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव को हल्का करके मानवीय संवेदना को जगाने का सफल प्रयास करती है ।